Thursday 23 June 2016

खाली सा दिन"
खाली सा दिन...
लम्हा दर लम्हा अपनी ही पीठ पर
खुद को उठाये फिरता बोझिल सा
सदियों की शक्ल में
खर्च होते से लम्हे
पहरों पहर
खुद ही खुद का हिसाब कर बैठते अक्सर
इन खाली दिनों को भरने की
तमाम नाकाम सी कोशिशों में
भरी आँखें भरे मन से
खाली खाली सी मुट्ठियों में
खोजती रहीं
खाली दिनों और खुद का वज़ूद.....!!!
‪#‎प्रियंका‬
झर झर निर्झरिणी बह निकली
अलमस्त पवन के संग चली
प्रिय मिलन की मन में आस लिए
आतुर व्याकुल होकर निकली

उत्तंग शिखर से चली निकल
घाटी पत्थर पर्वत समतल
सुधबुध खोकर हो रही विकल
उठती गिरती जैसे पगली

इक चंचल चपल चकोरी सी
मनभावन मुग्ध मयूरी सी
अंतस अंबुधि की आस लिए
झागों की चूनर पहने उजली

दुर्गम रस्ते पत्थर चट्टानों में
जीवन के अनगिन आयामों में
स्थिर अविचल रहना तुम भी
हर पग देती यह सीख भली

अंजुरी भर पूर्ण प्रसाद लिए
कलकल मन में आह्लाद लिए
मिल इष्ट की पावन लहरों से
अपना अस्तित्व ही भूल चली

यह प्रेम सुधा सरिता पावन
रिमझिम बरसे जैसे सावन
न स्वयं रहे न अहम रहे
नव पुष्प बने तब प्रेम कली
-----प्रियंका