Sunday 1 March 2015

मेरे दिन.......

अनवरत आवागमन
उगना ठहरना बीतना
जलते बुझते रंग बिखेरते
गुजरती है सृष्टि तुमसे
पर मैं शापग्रस्त शिला सी
जब भी हाथ बढाए
तुम पराये ही मिले
खटखटाई है सांकल
कभी धीमे कभी व्यग्रता से
कभी आशा कभी निराशा से
पर
चल दिए तुम मुह फेर
अस्वीकार कर के
अंकुरित पल्लवित उद्भाभासित
इन्द्रधनुषी फुहार से
जो किसी का कर्जदार न हो
क्या बस एक बार
तुम उगोगे सिर्फ मेरे लिए
ए दिन..................!!!!!
----प्रियंका

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