Sunday 1 March 2015

जिंदगी........ उम्मीदों के खुशनुमा फरेब सी

संदर्भों को खोजते संवाद
बोझिल मन के अवसाद
कहीं तो कुछ रह गया है सिमट के
घडी की सुईयों से बंधा
घंटों और दिनों का इंतजार
जिंदगी........
उम्मीदों के खुशनुमा फरेब सी.............!!!!!!!!
-------प्रियंका

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