Sunday 1 March 2015



अक्सर
खामोश हो जाया करती हैं
यूँ ही बेलौस बहते बहते
या बैठ जाया करती है
अख्तियार कर
एक चुप सी
गिर्द फूलों के
देखते एकटक
मानों सहेज लेना हो हर कतरा
उन लम्हों का
जो अख्तियार में नहीं
मिल गए हो अचानक ही
घुटन सी होती है
शायद
खुशबुओं का दम घुटता है
भीड़ में तितलियों की
-----प्रियंका े

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