Thursday 13 November 2014

तुम ही थे


तुम ही थे

कुछ बंद किताबों के पन्ने
फिर फिर से जैसे खुल जाए
आखर आखर बन सरगम ज्यो
प्राणों में आकर घुल जाए
नयनो की मोहक चितवन में
कोई और नहीं तुम ही थे

महकी महकी सी साँसों में
तेरी मोहक खुशबू बस जाए
हरपल पलछिन रात और दिन
यादे तेरी सज सज जाएँ
सपनो के खिलते गुलशन में
कोई और नहीं तुम ही थे

श्वाँस श्वाँस मधुरिम स्पंदन ले
मन चातक कुछ भी न कह पाए
नयनो की मधुरिम भाषा सुन
विस्मित अधर मूक से रह जाए
जो तस्वीर बसी मन दर्पण में
कोई और नहीं तुम ही थे
------प्रियंका े