Thursday 6 March 2014

मॉ...............

मॉ
तुम केवल शब्द नहीं हो कैसे व्यक्त करूं तुमको शब्दों में..
मेरी परिभाषा हो तुम..
मेरी सारी उपलब्धि में आशा बनकर छलकी हो तुम...
मेरी हर वेदना में भी संवेदना बन रहती हो तुम...
एक दिवस में कैसे सीमित कर दूं तुमको...
मॉ तुम तो प्रेम सलिल हो..ममता का एक विस्तृत सागर..
तुम तो बस इक सघन छॉव हो सब कुछ भूलें जिसमें आकर..

मॉ तुम न होकर भी यहीं कहीं हो..
निर्दय नियति से दूर गई हो..
इक आशा देती रहती हो दुख के भंवर मे जब भी पडे हैं
वापस तुमको पा न सके हम पर ईश्वर से भी बहुत लडे हैं

जीवन का आधार बिन्दु   हो....
तुम जीवित हो मनमें मेरे यह जीवन है जब तक..

मॉ तुम्हारी पावन स्मृतियों को समर्पित हैं मेरे अश्रु मुक्तक..........
                       ---------प्रियंका


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