Thursday 6 March 2014

निवेदन...........

अभीप्सित नहीं स्नेह इतना
कि ताजमहल में कम्पन हो
साथ चलें हर पग पर हम
फिर भी सुन्दर दूरी साथ रहे


सुघर पारखी बन कर तुमने
ये जीवन कंचन कर डाला
सम्पूर्ण बने न जीवन मेरा
पारस की सदा ही आस रहे


नियति साथ चलती है सबके
भाग्य रचाए खेल अनेक
बाद दिवस की कड़ी धूप के
बस स्वप्निल संध्या साथ रहे

तुम मन मानस के देव बने
बस इतना सा वर दे देना
पूरी न हो आस सभी
अधूरी ही मन चाही साध रहे
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प्रियंका  

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