Saturday 8 February 2014

अधूरी धूप

आज कल बहुत सर्द सा हो चला है
मौसम ज़िन्दगी का जाने क्यूँ
हमेशा खिलखिलाती थी यूँ ही
वो धूप लौट कर आती ही नहीं

वक़्त के साथ कहाँ गुम हो गयीं
मुस्कुराहटें रूठ सी गयीं हमसे
छिपाते फिरते हैं लोगों से
आँखों की नमी है की जाती ही नहीं

सुना था वक़्त तो यूँ ही उड़ जाता है
पर ठहरा क्यूँ है मेरे कमरे में
जाने क्यूँ घडी की सुइयां
आगे का वक़्त बताती ही नहीं

तुम...तो अपने थे और बेहद अपने
पर ज़माने से बहुत तेज़ चले
जाने क्यूँ एक ये खलिश
दिल से कभी जाती ही नहीं

©प्रियंका

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